राम जन्मभूमि अयोध्या धाम में भगवान राम की प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पाकुड़िया प्रखंड में चहुंओर उत्साह का माहौल
झारखंड नामा संवाददाता राजकुमार गौतम पाकुड़िया/ पाकुड़/ राम जन्मभूमि अयोध्या धाम में भगवान राम की प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पाकुड़िया प्रखंड में चहुंओर उत्साह का माहौल है। प्रखंड के सभी गांवों एवं मंदिरो में उत्सव को भव्य बनाने की तैयारी पूरी कर ली गई है। इस अवसर पर पाकुड़िया हनुमान मंदिर प्रांगण में आयोजित तीन दिवसीय संगीत मय रामकथा का शुभारंभ शनिवार की शाम को व्यास गौतम जी महराज द्वारा गुरु वंदना के साथ किया गया । कथा के शुभारंभ में उन्होंने कहा कि बड़े ही सौभाग्य की बात है कि 500 वर्षो बाद प्रभु राम अपने घर पर वापस आ रहे हैं उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रति इस कार्य के लिए बारंबार आभार प्रकट किया । कथा के दौरान प्रभु श्रीराम की बाल लीला पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भगवान राम के जन्म के बाद पूरे अयोध्या में शहनाई की आवाज गूंज रही थी। श्री राम की बाल लीला संसार की सकारात्मक एवं सुखद आनंदमई लीला है ,भगवान राम की बाल लीला में ही उनके साम्यवादी चिंतन तथा उनका क्रियात्मक रूप स्पष्ट होता है ,जब वह दशरथ के आंगन में बिहार करते हैं और महाराज दशरथ उन्हें भोजन के लिए बुलाते हैं तो वह समता के पोषक होकर बाल शाखाओं के साथ खेला करते हैं और वह भोजन के लिए नहीं आते हैं ।किंतु जब माता कौशल्या उन्हें वात्सल्य भाव से बुलाती है तो वह ठुमक, ठुमक, कर उनके पास चले आते हैं ।आगे कथा में श्री महाराज जी ने बताया कि भगवान राम के साम्यवादी व समतामूलक चिंतन स्पष्ट होता है। बाल में उनकी लीलाओं के दर्शन करने के लिए देवता भी तरसते थे। भगवान शिव खुद ही वीर हनुमान के साथ वेश बदलकर भगवान राम की बाल लीलाओं के दर्शन करते आए थे। आगे श्री कथावाचक ने कहा कि श्री राम कथा का श्रवण कर उनका अनुसरण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। हमें भगवान श्री राम द्वारा स्थापित किए गए आदर्शो पर चलने का प्रयास करना चाहिए । कथा का विस्तार देते हुए कथावाचक ने कहा जब जीवन में निराशा छा जाए तो व्यक्ति को संत की शरण में जाना चाहिए ।संत राष्ट्र हितकारी होता है भक्तों के बीच कथा की अमृत वर्षा करते हुए कहा कि अगर सुख दुख नहीं होता तो प्रभु की याद न आती ,अंधेरे में रहने वाले लोग ही प्रकाश के महत्व को भलीभांति समझ पाते हैं । कथा व्यास नेआगे कहा कि यह मानवीय स्वभाव है कि लोग सहजता से प्राप्त वस्त्र की ज्यादा कद्र नहीं करते हैं प्रेम के वशीभूत होकर ही प्रभु निर्गुण से सतगुरु सगुण रूप में दर्शन देते हैं। भगवान मनुष्य के मन के अंदर निवास करते हैं लेकिन वह उन्हें तीर्थ स्थानों और मंदिरों में तलाश करता है । जिस प्रकार कस्तूरी मृग की नाभि में होती है लेकिन वह उसकी तलाश में जंगल में भटकता रहता है ।उन्होंने जीवन में यज्ञ की भांति बताते हुए कहा कि इसमें मनुष्य अपने कर्मों की पूर्णाहुति कर देता है। कथा के दौरान उनके संगीतमय भजन सुनकर दर्शक भाव विभोर हो कर थिरकने लगे। कथा के दौरान बाल कलाकारों द्वारा आकर्षक झांकी की भी प्रस्तुत की गई ।