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मैथिल नवविवाहित स्त्रियों द्वारा मनाया जाने वाला मधुश्रावणी व्रत संपन्न

मैथिल नवविवाहित स्त्रियों द्वारा मनाया जाने वाला मधुश्रावणी व्रत संपन्न

पाकुड़– मैथिल नवविवाहित स्त्रियों द्वारा मनाया जाने वाला मधुश्रावणी व्रत आज पूरे भक्तिभाव से संपन्न हुआ । श्रावण कृष्ण पक्ष पंचमी से श्रावण शुक्ल पक्ष तृतीया तक यह व्रत नवविवाहित स्त्रियों द्वारा किया जाता है । मैथिलों में अदभुत होता है मधुश्रावणी व्रत कथा, सोलहों श्रृंगार कर नवविवाहिताएं पति के दीर्घायु की कामना से यह व्रत संपन्न करती है ।

महिला पुरोहित करवाती है पूजा

जबकि कर्मकांड पर पुरुषों का एकाधिकार है पर इस व्रत में सम्पूर्ण विधि–विधान का निस्तारण महिला पुरोहित द्वारा ही किया जाता है ।इस व्रत में पति की लंबी उम्र के लिए भगवान शंकर, माता गौरी एवं नाग देवता (विषहरा–विषहरी) की पूजा की जाती है । खास बात यह है की इस पारंपरिक व्रत को नवविवाहिताएं मायके में करती है परंतु संपूर्ण पूजा सामग्री विवाहितों के खाने–पीने का सभी सामान, मायके के पूरे परिवार हेतु नव वस्त्र आदि ससुराल से आने का रिवाज आज तक कायम है । पूजा के दौरान महिला पुरोहित द्वारा चौदह दिन तक भगवान शंकर, माता पार्वती, नाग देवता आदि के कथाओं को सुनाकर सुखमय वैवाहिक जीवन जीने की कला सिखाई जाती है। नवविवाहित वीना झा बताती है की श्रावण मास में हमारे समुदाय के नव विवाहिताओं द्वारा इस पूजा को किए जाने का बहुत महत्व है । यह पूजा पुरातन काल से पारंपरिक तरीकों से होता आया है । मधुश्रावणी व्रत पति के दीर्घायु एवं सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए किया जाता है ।

श्रावण मास में मनाए जाने वाला यह पर्व भारतीय समाज की सांस्कृतिक, धार्मिक व परंपरागत सम्मान के प्रतीक रूप में आज भी मैथीलों में जीवंत है। 

टेमी दागने की रस्म के साथ हुआ व्रत संपन्न

समापन के दिन टेमी दागने की रस्म अदा की जाती है । इसमें घुटने एवं पांव पर छिद्रयुक्त पान का पत्ता रखकर जलते हुए घी की बाती रख दी जाती है जिससे एक निशान बन जाता है । इस निशान को अचल सुहाग का प्रतीक माना जाता है।

चौदह दिन चलने वाले इस व्रत में नवविवाहिताएं दिन में फलाहार एवं रात्रि में बिना नमक के अरवा भोजन करती है तथा इस चौदह दिनों में महादेव , गौरी, गणेश एवं नाग देवता की अलग अलग कथा का वर्णन किया जाता है ।

पहले दिन मौन पंचमी कथा का वर्णन सुनाया जाता है.

दूसरे दिन की कथा में बिहुला एवं मनसा का कथा विषहरा का कथा एवं मंगला गौरी का कथा सुनाया जाता है. तीसरे दिन की कथा में पृथ्वी का जन्म एवं समुद्र मंथन का कथा सुनाया जाता है. चौथे दिन की कथा में माता सती की कथा सुनाई जाती है. पांचवें दिन के कथा में महादेव की पारिवारिक कथा सुनाया जाता है. छठे दिन की कथा में गंगा का कथा गौरी का जन्म एवं कामदहन की कथा सुनाई जाती है.गौरी के विवाह की कथा सुनाई जाती: सातवें दिन की कथा माता गौरी की तपस्या की कथा सुनाई जाती है. आठवें दिन की कथा में गौरी के विवाह की कथा सुनाई जाती है. नौवे दिन की कथा में मैना का मोह एवं गौरी के विवाह कथा सुनाई जाती है. दसवें दिन की कथा में कार्तिक एवं गणेश भगवान के जन्म की कथा सुनाई जाती है. 11वे दिन संध्या के विवाह की कथा सुनाई जाती है. 12वें दिन बाल बसंत एवं गोसावन का कथा सुनाया जाता है और 13 वें दिन श्रीकर राजा के कथा को सुनाया जाता है तथा 14वें दिन कथा समापन के साथ सुहागिन महिलाओं को मिष्ठान भोजन करवाया जाने की परंपरा आज भी देखी जाती है ।

   (झारखंड नामा संवाददाता पाकुड़ )

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