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विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय आदिवासी छात्र संघ की व्ययाखान 

विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय आदिवासी छात्र संघ की व्ययाखान 

 

विक्की कुमार धान महासचिव, राष्ट्रीय आदिवासी छात्र संघ की कलम से

 

झारखंड नामा / हज़ारीबाग आज जब हम विश्व आदिवासी दिवस मना रहे हैं, यह अवसर हमें अपनी समृद्ध संस्कृति, परंपराओं और हमारे समाज की अनूठी पहचान को पुनः जीवित करने और सशक्त बनाने का सुनहरा अवसर प्रदान करता है। आधुनिक समय में आदिवासी परंपराओं और संस्कृति को बनाए रखना और उसे आगे बढ़ाना एक चुनौती जरूर है, लेकिन आदिवासी समाज, विशेषकर युवा पीढ़ी, इस दिशा में सक्रिय रूप से कार्य कर रही है।

1. परंपराओं को आधुनिक समय में आगे बढ़ाना:*हमारे युवा आदिवासी भाई-बहन आज अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों को आधुनिक जीवनशैली के साथ समन्वित करते हुए आगे बढ़ा रहे हैं। वे न केवल अपनी संस्कृति को जीवित रख रहे हैं, बल्कि इसे नई पीढ़ी तक भी पहुंचा रहे हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म, सोशल मीडिया और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से आदिवासी युवा अपने कला, संगीत, नृत्य, और पारंपरिक ज्ञान को पूरी दुनिया के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं।

.2 सरना धर्म की मान्यता और आदिवासी युवाओं की राय:सरना धर्म की मान्यता को लेकर आदिवासी युवाओं में एक बड़ा आंदोलन चल रहा है। वे चाहते हैं कि सरकार और समाज उनके धार्मिक विश्वासों को अलग धर्म के रूप में मान्यता दे। यह मांग आदिवासी समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक पहचान को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हमारा संघ इस आंदोलन को पूर्ण समर्थन देता है और हम सरकार से आग्रह करते हैं कि आदिवासी धर्मों को समुचित मान्यता दी जाए।

.3 आदिवासी युवा प्रतिभाएं:आदिवासी समाज के युवा खेल, व्यवसाय, और फैशन-कला के क्षेत्र में अद्वितीय प्रदर्शन कर रहे हैं। चाहे वह अष्टम उरांव जैसी खेल की दुनिया में सितारे हों, या फिर फैशन और कला में अपनी अनूठी पहचान बना रहे युवा कलाकार, वे सभी हमारे समाज की समृद्धि का प्रतीक हैं। हमारी संस्था ने इन प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के लिए कई कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं आयोजित की हैं ताकि और भी युवा इनसे प्रेरित होकर आगे बढ़ सकें।

.4झारखंड में जनजातीय भाषा शिक्षण का हाल:झारखंड में जनजातीय भाषाओं के शिक्षण की स्थिति चिंता का विषय है। हाल के वर्षों में, भले ही सरकार और विभिन्न संगठनों ने जनजातीय भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन की बात की है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका असर सीमित है। कई क्षेत्रों में शिक्षक न होने के बावजूद संथाली और मुंडारी भाषाओं में शिक्षा देने का प्रयास किया जा रहा है। यह दुखद है कि अब तक राज्य का पहला आदिवासी विश्वविद्यालय भी पूरी तरह से संचालित नहीं हो सका है। हम सरकार से मांग करते हैं कि इस दिशा में गंभीरता से कदम उठाए जाएं और हमारे समाज के शैक्षिक उत्थान के लिए आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए इस विश्व आदिवासी दिवस पर, हम सभी से आग्रह करते हैं कि हम एकजुट होकर अपनी परंपराओं, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा के लिए निरंतर प्रयासरत रहें।

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Author: Jharkhand Nama

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